पिछले कुछ समय से हिंदी फिल्मों में कुछ ज्यादा ही खून खराबा दिखाया जाता है. ऐसा क्यूँ?
पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड फिल्मों और वेब सीरीज़ में खून-खराबा noticeably बढ़ गया है। पहले जहां एक्शन सीन में हीरो को गोली लगने के बाद भी वो अगले सीन में गाना गाते नज़र आता था, अब उसी सीन को इतना रियलिस्टिक दिखाया जाता है कि खून, चोट और दर्द सब कुछ स्क्रीन पर साफ़ नज़र आता है।
इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह है audiences की demand for realism. लोग अब चाहते हैं कि अगर कहानी क्राइम या गैंगस्टर पर है, तो उसमें हिंसा भी असली जैसी लगे। OTT platforms ने भी इस ट्रेंड को और boost किया है, क्योंकि यहां सेंसरशिप का दबाव थिएटर फिल्मों जैसा नहीं होता। "Gangs of Wasseypur", "Mirzapur" और "Sacred Games" जैसी सीरीज़ ने दिखा दिया कि intense और violent content के लिए भी भारत में बड़ा दर्शक वर्ग है।
इसके अलावा, Hollywood और Korean thrillers का भी बड़ा influence है। जब लोग international content देखते हैं, तो उन्हें लगता है कि हमारे यहां भी वैसी ही quality और detailing होनी चाहिए। इसी वजह से मेकर्स अब action और crime scenes को ज्यादा ग्राफ़िक और detailed तरीके से शूट करते हैं।
Marketing में भी violence एक tool बन चुका है। ट्रेलर में खून से सने सीन डालकर curiosity और hype create की जाती है, जिससे सोशल मीडिया पर चर्चा अपने आप शुरू हो जाती है।